3.6 वस्त्र-सामग्री का इतिहास
क्या आपने कभी यह जानने का प्रयास किया है कि प्राचीन काल में लोग पहनने के लिए किस सामग्री का उपयोग किया करते थे? वस्त्रों के विषय में पूर्व प्रमाणों से ऐसा प्रतीत होता है कि प्रारंभ में लोग वृक्षों की छाल (व़ल्क), बड़ी बड़ी पत्तियों अथवा जंतुओं की चर्म और समूर से अपने शरीर को ढकते थे। कृषि समुदाय में बसना आरंभ करने के पश्चात लोगों ने पतली पतली टहनियों तथा घास को बुनकर चटाईयां तथा डालियां बनाना सीखा। लताओं जंतुओं की ऊन अथवा बालों को आपस में ऐंठन देकर लंबी लड़ियां बनाई। इनको बुनकर वस्त्र तैयार किए। पूर्व में भारतवासी रुई से बने वस्त्र पहनते थे जो गंगा नदी के निकटवर्ती क्षेत्रों में उगाई जाती थी।
>> फ्लैक्स भी एक पादप है जिससे प्राकृतिक तंतु प्राप्त होता है।
प्राचीन मिस्र में वस्त्रों को बनाने के लिए रुई तथा फ्लैक्स की कृषि नील नदी के निकटवर्ती क्षेत्रों में की जाती थी। उन दिनों में लोगों को सिलाई करना नहीं आता था। उस समय लोग अपने शरीर के विभिन्न भागों को वस्त्रों से आच्छादित कर लेते थे। वे शरीर को आच्छादित करने के लिए कई विभिन्न ढंगों का उपयोग करते थे। सिलाई की सुई के आविष्कार के साथ लोगों ने वस्त्रों की सिलाई करके पहनने के कपड़े तैयार किए। इस आविष्कार के पश्चात सिले कपड़ों में बहुत सी विभिन्नताएं आ गई है। परंतु क्या यह आश्चर्यजनक बात नहीं है कि आज भी साड़ियों, धोतियों, लुंगियों तथा पगड़ियों का बिना सिले वस्त्रों के रूप में उपयोग किया जाता है? जिस प्रकार समस्त देश में खाए जाने वाले भोजन में अत्यधिक विविधता देखने को मिलती है, ठीक उसी प्रकार वस्त्रों एवं पहनने की वस्तुओं में भी अत्यधिक विविधता पाई जाती है।
प्रमुख शब्द
रुई
वस्त्र
तंतु
कताई
बुनाई
तागा


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