10.1 यातायात की कहानी
प्राचीन काल में लोगों के पास यातायात के कोई साधन नहीं थे। वे पैदल चलते थे तथा अपना सामान अपनी पीठ पर लादकर ले जाते थे। बाद में मानव यातायात के लिए पशुओं का उपयोग करने लगा।
प्राचीन काल में जल मार्गों में आने जाने के लिए नावों का उपयोग किया जाता था। आरंभ में लकड़ी के लट्ठों से जिनमें खोखली गुहिका बनाई जा सके, नावें बनाई जाती थी। इसके पश्चात लोगों ने लकड़ी के विभिन्न टुकड़ों को आपस में जोड़कर नाव की आकृति बनाना सीख लिया। ये नावें जल में रहने वाले जीवों की आकृतियों के सदृश थीं। अध्याय 8 एवं 9 में मछलियों की धारा रेखीय आकृति से संबंधित चर्चा को याद कीजिए।
पहिए के आविष्कार ने यातायात की प्रणाली में अत्यंत महत्वपूर्ण परिवर्तन किए। पिछले हजारों वर्षों में पहिए वाली गाड़ियों को खींचने के लिए पशुओं का उपयोग किया जाता था।
उन्नीसवीं शताब्दी के प्रारंभ तक भी लोग एक स्थान से दूसरे स्थान तक परिवहन के लिए पशुओं, नावों तथा जहाजों पर निर्भर करते थे। वाष्प इंजन के आविष्कार से परिवहन के नए साधनों का विकास हुआ। वाष्प ईंजन से चालित सवारी गाड़ियों तथा माल गाड़ियों के डिब्बों के लिए रेल की पटरियों का निर्माण किया गया।


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